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GST काउंसिल के फैसले से पेमेंट एग्रीगेटर्स और मर्चेंट्स को बड़ा झटका, 2000 की पेमेंट पर लगेगा 18% GST

GST काउंसिल की बैठक में छोटे डिजिटल लेन-देन पर 18% GST की मांग से पेमेंट एग्रीगेटर्स और मर्चेंट्स पर असर पड़ सकता है। यदि 2017 से लागू GST को पुनः लिया जाता है, तो मर्चेंट्स और पेमेंट प्रोवाइडर्स को वित्तीय झटका लग सकता है।

GST काउंसिल के फैसले से पेमेंट एग्रीगेटर्स और मर्चेंट्स को बड़ा झटका, 2000 की पेमेंट पर लगेगा 18% GST

हाल ही में, डेबिट और क्रेडिट कार्ड से की जाने वाली कम मूल्य की पेमेंट पर 18% GST लगाने का मामला सामने आया है। इस संदर्भ में, BillDesk और CCAvenue जैसे प्रमुख पेमेंट एग्रीगेटर्स को माल और सेवा कर (GST) अधिकारियों से नोटिस प्राप्त हुए हैं।

GST अधिकारियों ने नोटिस जारी कर के पेमेंट एग्रीगेटर्स को निर्देश दिया है कि वे 2,000 रुपये से कम के डिजिटल लेनदेन पर 18% GST लागू करें। यह निर्णय, GST के तहत डिजिटल भुगतान की प्रक्रिया को स्पष्ट करने के प्रयास का हिस्सा है।

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पहले छोटी पेमेंट पर नहीं था टैक्स

भारत में कुल डिजिटल पेमेंट्स का 80% से अधिक हिस्सा 2,000 रुपये से कम की राशि का होता है। 2016 में नोटबंदी के दौरान जारी की गई एक अधिसूचना के अनुसार, पेमेंट एग्रीगेटर्स ने ऐसे छोटे ट्रांजेक्शंस पर मर्चेंट्स को दी गई सेवाओं पर टैक्स लगाने से परहेज किया था। इस अधिसूचना के चलते, उन लेनदेन पर किसी भी प्रकार के माल और सेवा कर (GST) की मांग नहीं की गई थी।

अब 2000 से कम राशि पर लगेगा टैक्स

अब, GST अधिकारियों ने वित्तीय वर्ष 2017-18 से टैक्स की मांग करना शुरू कर दिया है, जब GST प्रणाली को लागू किया गया था। इसका मतलब है कि पिछली अवधि में किए गए उन डिजिटल लेनदेन पर, जो 2,000 रुपये से कम के थे, अब टैक्स लगाया जाएगा। यह कदम GST के तहत नियमों और उनके अनुपालन को स्पष्ट करने की दिशा में उठाया गया है।

बैठक में होगी चर्चा

यदि 9 सितंबर को होने वाली GST काउंसिल की बैठक में यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि पेमेंट एग्रीगेटर्स (PAs) और मर्चेंट्स को दी गई छूट अब आगे उपलब्ध नहीं होगी, तो यह डिजिटल लेनदेन के क्षेत्र में एक प्रकार से पीछे की ओर कदम होगा।

हालांकि, यदि GST काउंसिल यह फैसला करती है कि 2,000 रुपये से कम के सभी डिजिटल लेन-देन पर 2017 से लागू GST को पुनः उसी तरह से लागू किया जाएगा जैसा पहले होता था, तो यह मर्चेंट्स और पेमेंट एग्रीगेटर्स के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा। इसका मतलब होगा कि मर्चेंट्स और पेमेंट एग्रीगेटर्स को पिछली अवधि से GST की देनदारी का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनके व्यवसाय पर वित्तीय बोझ बढ़ सकता है।