Trendingट्रेंडिंग
वेब स्टोरी

Trending Web Stories और देखें
वेब स्टोरी

Khatu Shyam Baba: राजस्थान के सीकर में पूजा जाता है खाटू श्याम का सिर, कहां होती है धड़ की पूजा

खाटू श्याम जी, जिन्हें बर्बरीक के नाम से भी जाना जाता है, महाभारत के वीर योद्धा थे। भगवान श्रीकृष्ण के अनुरोध पर बर्बरीक ने अपना शीश अर्पित किया और उन्हें वरदान मिला कि वे कलियुग में श्याम के रूप में पूजे जाएंगे। 

Khatu Shyam Baba: राजस्थान के सीकर में पूजा जाता है खाटू श्याम का सिर, कहां होती है धड़ की पूजा

खाटू श्याम जी की पौराणिक कथा महाभारत से गहरे रूप से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि खाटू श्याम जी कोई और नहीं बल्कि भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक हैं। बर्बरीक का जन्म महाभारत युद्ध से पहले हुआ था, और वे अपने पराक्रम और शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे।

जब भगवान श्रीकृष्ण को यह पता चला कि बर्बरीक युद्ध में भाग लेने के लिए आ रहे हैं, तो वे चिंतित हो गए। श्रीकृष्ण जानते थे कि बर्बरीक का यह वचन महाभारत युद्ध के संतुलन को बिगाड़ सकता है, क्योंकि वे हमेशा कमजोर पक्ष का साथ देते हैं। उन्होंने बर्बरीक की परीक्षा लेने का निर्णय लिया और एक साधु के वेश में उनके सामने आए थे।

ये भी पढ़े- आप के सारे बिगड़े काम बना देंगी राधारानी, इस बार राधा अष्टमी में जरूर कीजिएगा ये काम !

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वे किस पक्ष से युद्ध करेंगे। बर्बरीक ने अपने वचन के अनुसार कहा कि वे कमजोर पक्ष का समर्थन करेंगे। श्रीकृष्ण ने महसूस किया कि जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ेगा, बर्बरीक की स्थिति युद्ध के परिणाम को अप्रत्याशित बना सकती है। उन्होंने बर्बरीक से उनके तीन बाणों के शक्तियों के बारे में पूछा, और बर्बरीक ने बताया कि उनके एक बाण से पूरी सेना को नष्ट किया जा सकता है और दूसरे बाण से उन्हें पुनः जीवित किया जा सकता है।

बर्बरीक ने अर्पित किया श्रीकृष्ण का सिर

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि वह सबसे महान योद्धा का सिर चाहते हैं। बर्बरीक ने इसे स्वीकार कर लिया और अपना सिर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया। श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कलियुग में वे श्याम के नाम से पूजे जाएंगे और उनके भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

इसके बाद, श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को एक वरदान मांगने के लिए कहा। बर्बरीक ने अपनी इच्छा व्यक्त की कि वे महाभारत के युद्ध का पूरा अंत देखना चाहते हैं। श्रीकृष्ण ने उनकी यह इच्छा पूरी करने के लिए उनका सिर एक पीपल के पेड़ पर रख दिया, ताकि वे युद्ध का अवलोकन कर सकें।

जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ, तो भगवान श्रीकृष्ण ने पीपल के पेड़ पर रखा हुआ बर्बरीक का सिर उतारकर रूपवती नदी में प्रवाहित कर दिया। यह सिर नदी में बहते हुए राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव में जमीन के भीतर जाकर दब गया। बाद में, इस स्थान पर एक चमत्कार हुआ—एक गाय जब उस जगह से गुजरी तो उसके थनों से स्वतः दूध बहने लगा। इस अनोखी घटना ने उस स्थान को पवित्र और महत्वपूर्ण बना दिया, जिसके बाद खाटू श्याम जी की पूजा शुरू हुई।

कैसे हुई खाटू श्याम मंदिर की स्थापना

जब गाय के थानों से अपने आप दूध बहने लगा, तो यह चमत्कारी घटना खाटू के राजा के पास पहुंची। राजा को अचानक अपने सपने की याद आई, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें आदेश दिया था कि एक स्थान पर जमीन में बर्बरीक का शीश दफन है और उसे निकालकर एक मंदिर में स्थापित करना चाहिए। राजा ने उस स्थान पर खुदाई करवाई, जहां सचमुच बर्बरीक का शीश मिला। इसके बाद, उन्होंने शीश को सम्मानपूर्वक एक मंदिर में स्थापित करवाया और खाटू श्याम जी का भव्य मंदिर बनवाया, जो आज खाटू श्याम मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

कहां होती है खाटू श्याम के धड़ की पूजा

इस मंदिर में खाटू श्याम जी के शीश की पूजा की जाती है, जबकि उनके धड़ की पूजा हरियाणा के हिसार जिले के गांव में की जाती है। खाटू श्याम जी को भगवान श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है, और उनके भक्त उन्हें 'शीश का दानी' के रूप में पूजते हैं, जो अपने बलिदान और धर्म के प्रति निष्ठा के लिए विख्यात हैं।