बीकानेर की 89 साल पुरानी अनोखी परंपरा, उर्दू में रामायण का पाठ, हिंदू-मुस्लिम सद्भाव का प्रतीक
बीकानेर, राजस्थान में हर साल दिवाली के अवसर पर एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसमें हिंदू महाकाव्य रामायण का उर्दू में पाठ किया जाता है। यह परंपरा 89 साल पुरानी है और इसका उद्देश्य धार्मिक सद्भाव और सांस्कृतिक एकता का संदेश देना है।
राजस्थान का बीकानेर शहर एक अनोखी और दिल को छू लेने वाली परंपरा का गवाह है, जहां हर साल दिवाली के मौके पर हिंदू महाकाव्य रामायण का उर्दू में पाठ किया जाता है। यह परंपरा बीकानेर में हिंदू-मुस्लिम भाईचारे और सांस्कृतिक एकता का एक जीवंत उदाहरण बन चुकी है। खास बात यह है कि इस रामायण का उर्दू संस्करण लगभग 89 साल पुराना है, जिसे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था।
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अनोखी पहल की शुरुआत
इस अनोखी पहल की शुरुआत 1935 में मौलवी बादशाह हुसैन राणा लखनवी ने की थी, जब उन्होंने तुलसीदास की जयंती के अवसर पर उर्दू में रामायण लिखी। इसके बाद से हर साल बीकानेर में रामायण का उर्दू में पाठ एक महत्वपूर्ण आयोजन बन गया। इस साल भी इस परंपरा को निभाते हुए, बीकानेर के उर्दू शिक्षक और शायर डॉ. जिया-उल-हसन कादरी ने दो अन्य मुस्लिम शायरों के साथ मिलकर रामायण का पाठ किया।
धार्मिक सद्भाव और भाईचारे का संदेश
डॉ. कादरी ने बताया कि इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य धार्मिक सद्भाव और भाईचारे का संदेश देना है। उनकी मान्यता है कि रामायण जैसे महाकाव्य का उर्दू में पाठ विभिन्न समुदायों को एक मंच पर लाकर उनके बीच प्रेम और शांति का संदेश फैलाता है। इस आयोजन में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग बड़े उत्साह से भाग लेते हैं, जिससे सांप्रदायिक सद्भावना की भावना और मजबूत होती है।
दोनों समुदाय के बीच में प्रेम और सम्मान
पर्यटन लेखक संघ और महफिल-ए-अदब इस आयोजन को हर साल संयुक्त रूप से आयोजित करते हैं, जिसमें बीकानेर के नागरिक भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। डॉ. कादरी, जो 2012 से इस परंपरा का हिस्सा हैं, इस सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
इस आयोजन की खासियत यह है कि यह केवल धार्मिक पाठ नहीं है, बल्कि दोनों समुदायों के बीच प्रेम, सम्मान और सांस्कृतिक एकता की भावना को और गहरा करता है। बीकानेर की यह अनोखी परंपरा देशभर में एक मिसाल के रूप में देखी जा रही है, जो विविधता में एकता का सार पेश करती है।