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Banswada News: क्या टूट जाएगा राजस्थान और गुजरात का ये वादा, 58 साल पहले हुआ तय तो अब दिक्कत क्या है?

बांध की क्षमता 77 टीएमसी है और गुजरात के साथ समझौते के चलते बांध में 40 टीएमसी पानी आरक्षित रखना होगा। इसके अलावा मानसून सीजन में जब बांध के गेट खोले जाते हैं तो कई टीएमसी पानी भी गुजरात चला जाता है।

Banswada News: क्या टूट जाएगा राजस्थान और गुजरात का ये वादा, 58 साल पहले हुआ तय तो अब दिक्कत क्या है?

बांसवाड़ा जिले की माही नदी पर बनने वाले माही बांध के लिए राजस्थान और गुजरात के बीच दशकों पहले हुए समझौते के कारण राजस्थान माही के पानी की 'रक्षा' कर रहा है।

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बांध की क्षमता 77 टीएमसी है और गुजरात के साथ समझौते के चलते बांध में 40 टीएमसी पानी आरक्षित रखना होगा। इसके अलावा मानसून सीजन में जब बांध के गेट खोले जाते हैं तो कई टीएमसी पानी भी गुजरात चला जाता है। जबकि राजस्थान को सिर्फ 25 टीएमसी पानी मिलता है।

58 साल पहले का समझौता होगा खत्म !
राजस्थान में पेयजल और सिंचाई के लिए ईआरसीपी परियोजना पर राजस्थान और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए, लेकिन माही बांध परियोजना पर 58 साल पहले गुजरात के साथ हुए समझौते को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। राज्य के जिलों में पेयजल और सिंचाई जल संकट को काफी हद तक दूर किया जा सकेगा।

समझौते में क्या था ?
10 जनवरी 1966 को राजस्थान और गुजरात सरकार के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इसके तहत गुजरात सरकार माही बांध निर्माण की लागत का 55 प्रतिशत भुगतान करने के बदले में 40 टीएमसी पानी लेने पर सहमत हुई। तब यह भी निर्णय लिया गया कि जब नर्मदा का पानी गुजरात के खेड़ा जिले तक पहुंचेगा तो गुजरात राजस्थान के माही बांध के पानी का उपयोग नहीं करेगा और वह पानी राजस्थान में ही उपयोग किया जायेगा। वर्षों पहले नर्मदा का पानी खेड़ा तक पहुंच गया था। इसके बावजूद समझौते का पालन नहीं हो रहा है और माही के पानी पर गुजरात ने अपना अधिकार बरकरार रखा है।

राजस्थान को होगा ये बड़ा फायदा
राजस्थान और गुजरात सरकार के स्तर पर समझौते की पालना हुई तो बांसवाड़ा-डूंगरपुर समेत प्रदेश के कई जिलों में सिंचाई सुविधाओं की तस्वीर बदल जाएगी। इससे पहले भी माही बांध का पानी राजसमंद समेत अन्य जिलों में ले जाने की घोषणा हो चुकी है, लेकिन आरक्षित पानी के कारण मामला हमेशा खटाई में ही रहा है।

40 साल में अरब सागर में 1340 टीएमसी पानी आ चुका है। यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की झील जयसमंद झील को 91 बार भरने के लिए पर्याप्त पानी है। माही का पानी वागड़ के अब तक अछूते इलाकों में पहुंचाया जा सकता है और उन्हें तर किया जा सकता है।

विकास की संभावनाएं
वागड़ के दूसरे जिले डूंगरपुर तक माही का पानी पहुंचाने के लिए बनाई जा रही भीखाभाई नहर का काम भी अब तक पूरा नहीं हो सका है। माही के पानी में अभी भी अपार संभावनाएं हैं। माही का पानी वागड़ के अब तक अछूते इलाकों में पहुंचाया जा सकता है और उन्हें तर किया जा सकता है। बिजली उत्पादन कई गुना बढ़ सकता है। हजारों हेक्टेयर जमीन और सिंचित कर अनाज का लाखों उत्पादन टन स्केल किया जा सकता है।

किन जिलों की बुझेगी प्यास
चार दशकों में बांध से कुल 1340 टीएमसी पानी छोड़ा गया। यह पानी इतना है कि 10 जिलों डूंगरपुर, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, सिरोही, जालोर-सांचौर, पाली और बाड़मेर की 29 साल तक प्यास बुझाई जा सकती है।