Trendingट्रेंडिंग
वेब स्टोरी

Trending Web Stories और देखें
वेब स्टोरी

Bharat Bandh 2024: SC-ST आरक्षण मामले में भारत बंद पर क्या बोले किरोड़ी लाल मीणा, जानिए क्या है सुप्रीम कोर्ट का वो फैसल

किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि क्रीमी लेयर को लेकर देश में जिस तरह से व्यवहार चल रहा है. इसमें मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ हूं। मेरे गांव में एक व्यक्ति 30 साल से पहाड़ खोद कर मजदूरी कर पेट पाल रहा है।

Bharat Bandh 2024: SC-ST आरक्षण मामले में भारत बंद पर क्या बोले किरोड़ी लाल मीणा, जानिए क्या है सुप्रीम कोर्ट का वो फैसल

दलित समर्थित पार्टियों ने कल SC-ST आरक्षण मामले में भारत बंद का आह्वाहन किया है। जिसमें न केवल राजस्थान और यूपी बल्कि अन्य प्रदेशों में भी असर देखने को मिलेगा। बता दें कि राजस्थान में मीणा समाज से आने वाले कद्दावर नेता किरोड़ी लाल मीणा ने SC-ST आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।

इसे भी पढ़िये - Bharat Bandh on 21 August: क्यों हो रहा है देशव्यापी विरोध प्रदर्शन ? किसने इसका आह्वान किया? मकसद से लेकर सब कुछ बस एक

क्या बोले किरोड़ी लाल मीणा ?

किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि क्रीमी लेयर को लेकर देश में जिस तरह से व्यवहार चल रहा है. इसमें मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ हूं। मेरे गांव में एक व्यक्ति 30 साल से पहाड़ खोद कर मजदूरी कर पेट पाल रहा है। उसका बेटा भी इस पर काम कर रहा है। वह मेरा पड़ोसी है, मैं डॉक्टर बन गया, कैबिनेट मंत्री बन गया। मेरा भाई अफसर बन गया, लेकिन मेरा पड़ोसी अब तक कुछ नहीं बन पाया। जो मेरा पड़ोसी है, वो भी मेहनत कर रहा है। उसे भी कुछ मिलना चाहिए,  इसलिए अब उसे भी मौका मिलना चाहिए

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला ?
सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की पीठ ने 1 अगस्त को एक ऐतिहासिक फैसले में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) कोटा के संचालन के तरीके को नए सिरे से परिभाषित किया । 1950 में संविधान में आरक्षण लागू किए जाने के बाद से यह पहली बार हुआ।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 6:1 के बहुमत से दिए गए फैसले में राज्यों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण बनाने की अनुमति दे दी, ताकि इन श्रेणियों के भीतर सबसे पिछड़े समुदायों को निश्चित उप-कोटा के माध्यम से व्यापक सुरक्षा प्रदान की जा सके।

इससे ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 2004 के फैसले को पलट दिया गया है, जिसमें उसने कहा था कि एससी/एसटी सूची एक “समरूप समूह” है जिसे आगे विभाजित नहीं किया जा सकता। इस फैसले में छह अलग-अलग राय थीं, पांच उप-वर्गीकरण के पक्ष में और एकमात्र असहमति न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की थी।

संविधान का अनुच्छेद 341 राष्ट्रपति को सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से उन “जातियों, नस्लों या जनजातियों” को अनुसूचित जातियों में सूचीबद्ध करने की अनुमति देता है, जो अस्पृश्यता के ऐतिहासिक अन्याय से पीड़ित हैं। अनुसूचित जातियों के समूहों को शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में संयुक्त रूप से 15% आरक्षण दिया जाता है।

पिछले कुछ वर्षों में, अनुसूचित जातियों की सूची में कुछ समूहों का प्रतिनिधित्व दूसरों की तुलना में कम रहा है। राज्यों ने इन समूहों को अधिक सुरक्षा प्रदान करने के प्रयास किए हैं, लेकिन यह मुद्दा न्यायिक जांच में चला गया है।

1975 में पंजाब ने एक अधिसूचना जारी कर राज्य के दो सबसे पिछड़े समुदायों बाल्मीकि और मजहबी सिख समुदायों को अनुसूचित जाति आरक्षण में पहली वरीयता दी थी। 2004 में ई वी चिन्नैया मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आंध्र प्रदेश में इसी तरह के कानून को खारिज करने के बाद इसे चुनौती दी गई थी।

न्यायालय ने माना था कि अनुसूचित जातियों की सूची में कोई भी भेदभाव करने का प्रयास अनिवार्य रूप से उसमें छेड़छाड़ के समान होगा, जिसके लिए संविधान राज्यों को अधिकार नहीं देता। अनुच्छेद 341 केवल राष्ट्रपति को ऐसी अधिसूचना जारी करने और संसद को सूची में कुछ जोड़ने या हटाने का अधिकार देता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुसूचित जातियों को उप-वर्गीकृत करना अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

इस फैसले के आधार पर 2006 में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने डॉ. किशन पाल बनाम पंजाब राज्य मामले में उक्त 1975 की अधिसूचना को रद्द कर दिया। हालांकि, उसी वर्ष, पंजाब सरकार ने फिर से पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 पारित किया, जिसमें बाल्मीकि और मज़हबी सिख समुदायों के लिए आरक्षण में पहली वरीयता फिर से शुरू की गई।

इस अधिनियम को गैर-बाल्मीकि, गैर-मज़हबी सिख एससी समुदाय के सदस्य दविंदर सिंह ने चुनौती दी थी। 2010 में हाईकोर्ट ने इस अधिनियम को रद्द कर दिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई। 2014 में, यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को यह निर्धारित करने के लिए भेजा गया था कि क्या ई वी चिन्नैया निर्णय पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।

2020 में, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में कहा कि न्यायालय के 2004 के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। फैसले में कहा गया कि न्यायालय और राज्य “मूक दर्शक बनकर कठोर वास्तविकताओं से अपनी आँखें बंद नहीं कर सकते।”

महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने इस धारणा से असहमति जताई कि अनुसूचित जाति एक समरूप समूह है, और कहा कि “अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची में असमानताएं हैं।”

लेकिन चूंकि इस पीठ में ई वी चिन्नैया की तरह पांच न्यायाधीश शामिल थे, इसलिए फरवरी 2024 में सात न्यायाधीशों की पीठ ने इस मुद्दे पर सुनवाई की। यहां वे प्रमुख मुद्दे दिए गए हैं जो पीठ के समक्ष थे।