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Dholpur News Sawan Special: हजारों साल पुराने तीन रहस्यमय मंदिर, वास्तविकता जान कर रह जाएंगे हैरान

राजस्थान में कई ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर हैं। जो अपने रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। हजारों साल से ये मंदिर भक्तों के बीच आस्था का केंद्र है। आइए आपको बताते हैं धौलपुर के ऐसे ही तीन रहस्यमय मंदिरों के बारे में-

Dholpur News Sawan Special: हजारों साल पुराने तीन रहस्यमय मंदिर, वास्तविकता जान कर रह जाएंगे हैरान

राजस्थान में कई ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर हैं। जो अपने रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। हजारों साल से ये मंदिर भक्तों के बीच आस्था का केंद्र है। आइए आपको बताते हैं धौलपुर के ऐसे ही तीन रहस्यमय मंदिरों के बारे में- 

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अचलेश्वर महादेव मंदिर
राजस्थान के पूर्वी द्वार पर मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच स्थित धौलपुर में जिला मुख्यालय पर चंबल नदी के बीहड़ों में मौजूद प्राचीन महादेव मंदिर के बारे में कई मान्यताएं जुड़ी हैं। भक्तों की मानें तो यह मंदिर करीब एक हजार वर्ष पुराना है। पुराने समय में बीहड़ में डकैत होने की वजह से लोग यहां कम आते थे। लेकिन जैसे-जैसे स्थितियां बदलने लगीं । वैसे वैसे दूर-दूर से लोग यहां भगवान शिव के दर्शन करने आने लगे। यहां की धार्मिक मान्यताओं के अलावा एक और चौंकाने वाली बात है। यहां स्थित भगवान का शिवलिंग दिनभर में तीन बार रंग बदलता है। ऐसा यहां के लोगों का मानना है कि यह शिवलिंग सुबह के समय लाल रंग का, दोपहर में केसरिया रंग का और रात को सांवला हो जाता है। इस मंदिर को अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।

वैज्ञानिक भी नहीं जान सके कारण
अचलेश्वर महादेव मन्दिर के पुजारी मनोज दास बाबा का कहना है कि यह शिवलिंग दिनभर में तीन बार अपना रंग क्यों बदलता है वैज्ञानिक भी अब तक इस बात का पता नहीं लगा सके हैं। कई बार रिसर्च की गईं, लेकिन चमत्कारी शिवलिंग के रहस्य से पर्दा अब तक नहीं उठ पाया है। इस अद्भुत अचलेश्वर महादेव मंदिर में लोगों की काफी श्रद्धा और आस्था है। कहते हैं कि इस रहस्यमयी शिवलिंग के दर्शन करने मात्र से इंसान की सभी इच्‍छाएं पूरी होती है और जीवन की सभी तरह की तकलीफ दूर हो जाती हैं।

महादेव के इस मंदिर के बारे में लोगों की मान्यता है कि यहां कुंवारे लड़के और लड़कियां अपने मनचाहे जीवनसाथी की कामना लेकर आते हैं और भगवान शिवजी उसे मनोकामना को पूरा करते हैं।

यहां सोमवार के दिन शिवजी को जल चढ़ाने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। अविवाहित अगर यहां 16 सोमवार जल चढ़ाते हैं तो उन्हें मनचाहा जीवन साथी मिल जाता है। साथ ही विवाह में आ रही अड़चने भी दूर होती है।

परिक्रमा करता है 10 फीट का सांप 
वहीं श्रद्धालु बताते हैं कि शिवलिंग के पास दस फीट का सांप आता है और शिवलिंग की परिक्रमा करके चला जाता हैं। लेकिन ये सांप किसी इंसान को छूता तक नहीं है। धौलपुर शहर से करीब 5 किलोमीटर दूर चंबल नदी के किनारे बीहड़ोंं में स्थित अचलेश्वर महादेव का यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना बताया जाता है। शिवलिंग की खुदाई प्राचीन समय में राजा-महाराजाओं द्वारी भी कराई गई थी। लेकिन शिवलिंग का कोई भी छोर न मिलने के चलते खुदाई बंद करा दी गई थी। ऐसे में शिव भक्त इस मंदिर में हमेशा हर हर महादेव के जयकारे लगाते चले आ रहे हैं।

चोपड़ा मंदिर

धौलपुर जिले का ऐतिहासिक चोपड़ा मंदिर सैकड़ों वर्षों से श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है. इस मंदिर के मुकाबले आसपास कोई भी इतना प्राचीन मंदिर नहीं है जिसकी वजह से यह मंदिर को और भी खास बनाती है. बताया जाता है कि मंदिर की संरचना करीब 500 वर्ष है और यह धौलपुर का सबसे पुराना शिव मंदिर है.

सावन में इस मंदिर पर सोमवार के दिन पैर रखने की जगह तक नहीं होती है. शहर समेत आसपास के इलाके से लाखों की तादात में श्रद्धालु यहां भोले के दर्शन करने पहुंचते हैं. जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने भी इस मंदिर में भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया है. मंदिर परिसर में एक कुण्ड भी मौजूद है. कहा जाता है कि कुण्ड की आकृति चौकोर होने की वजह से मंदिर को चौपड़ा मंंदिर के नाम से जाना जाता है. मंदिर पर महाशिवरात्रि, सावन माह और साप्ताहिक सोमवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना और जलाभिषेक करने पहुंचते हैं.

1856 ईसवीं में निर्माण 
मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्त बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण धौलपुर के महाराजा भगवंत सिंह के मामा राजधर कन्हैया लाल ने करवाया था। जोकि धौलपुर राजघराने के दीवान हुआ करते थे. कन्हैया लाल ने इस मंदिर का निर्माण करीब 1856 ईसवीं में करवाया गया था. 

वास्तुकला का जीता-जागता उदाहरण चौपड़ा मंदिर की अलग पहचान है. मंदिर के करीब 500 साल पुराने होने का दावा किया जाता है. मंदिर की ऊंचाई करीब 150 फुट है. यह वास्तुकला के हिसाब से बेहद खूबसूरत और अपनी अलग छाप छोड़ता है. मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए 25 सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं. गर्भगृह अष्टकोणीय है. इस मंदिर के गर्भगृह को शिव यंत्र के रूप में भी देखा जाता है. मंदिर परिसर की दीवारों पर आठ दरवाजे भी बने हैं. हर दरवाजे पर आकर्षक मूर्तियां उकेरी गई हैं और मन्दिर के प्रवेश द्वार पर ब्रह्मा की मूर्ति विराजमान है. इसका शिखर भी खूबसूरत है जो दूर से नजर आता है. 

सैंपऊ महादेव मंदिर

सैंपऊ कस्बे से करीब 2 किलोमीटर दूर स्थित मंदिर में स्थापित शिवलिंग करीब 700 साल पुराना है। यह शिवलिंग हर मौसम में रंग बदलता है। किवदंती है कि संवत् 1305 में तीर्थाटन करते हुए यहां आए श्याम रतन पुरी ने एक पेड़ के नीचे धुनी लगाई थी। सैंपऊ महादेव मंदिर को राम रामेश्वर भी कहा जाता है।

श्री राम ने की शिवलिंग की स्थापना 
माना जाता है कि मुनि विश्वामित्र के साथ भ्रमण पर आए भगवान श्री राम ने पूजा-अर्चना के लिए इस शिवलिंग की स्थापना की थी। अपने समय के बाद में यह नीचे दब गया। मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ सभी की मनोकामना पूरी करते हैं। दक्षिण भारत में रामेश्वरम के बाद सैंपऊ कस्बे का ऐतिहासिक मंदिर भारतवर्ष में दूसरे स्थान पर है। यहां का शिवलिंग भारतवर्ष का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है।