Rajasthan By-Election: ब्राह्मण वोटर्स तय करेंगे दौसा का भविष्य! कम वोटिंग ने बढ़ाई BJP-कांग्रेस की टेंशन, जानें समीकरण
राजस्थान में सात सीटों पर हुए उपचुनाव में दौसा सीट सबसे चर्चा में रही। किरोड़ी लाल मीणा और सचिन पायलट के बीच कांटे की टक्कर ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया। क्या कम वोटिंग का चुनाव नतीजों पर असर डालेगा? जानिए दौसा उपचुनाव के समीकरण और संभावित परिणाम।
राजस्थान में सात सीटों पर हो रही वोटिंग अब समाप्त हो चुकी है। खींवसर और रामगढ़ में 71.45% -71.04% वोट पड़े। जबकि चौरासी में 68.55% फीसदी, सलूंबर में 64, झुंझुनू में 61 और देवली उनियारा सीट पर शाम पांच बजे तक 60 फीसदी मतदान हुआ। एक तरफ राजनीतिक पंडित उपचुनाव में हुई बंपर वोटिंग पर आश्चर्य जता रहे हैं तो दूसरी ओर दौसा पर एक्सपर्ट्स की निगाहें टिकी है। ये मात्र ऐसी सीट है जहां मतदान 55 फीसदी पर रूक गया। ऐसे में क्या कम वोटिंग का चुनावी रिजल्ट पर प्रभाव पड़ेगा। ये सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां पर मुख्य मुकाबला किरोड़ीलाल मीणा और सचिन पायलट के बीच में है। इस बार का चुनाव भजनलाल सरकार में मंत्री रहे किरोड़ीलाल मीणा के लिए अग्निपरीक्षा है, जो उनका सियास भविष्य को तय करेगा। गर इस परीक्षा में वह सफल नहीं होते हैं तो आगे मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
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हॉट सीट दौसा में सबसे कम वोटिंग
दौसा उपचुनाव की हॉट सीट है। यहां एक नहीं बल्कि राजस्थान की राजनीति के दो बड़े चेहरे मैदान में है। बीजेपी ने कोई खतरा मोल न लेते हुए किरोड़ीलाल मीणा के जगमोहन मीणा को टिकट दिया तो कांग्रेस ने पायलट खेमे के डीसी बैरवा को उम्मीदवार बनाया। वोटिंग से एक दिन पहले तक मीणा-पायलट दौसा में डेरा डाले रहे। गौरतलब है, दौसा पर कांग्रेस का कब्जा था, लेकिन मुरारी मीणा के सांसद बनने से इस सीट पर उपचुनाव हुए। बीजेपी के लिए भी उपचुनाव जीतना जरूरी है क्योंकि भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में लोकसभा चुनावों में पार्टी को 11 सीटों पर शिकस्त का सामना करना पड़ा था।
जातिगत समीकरण तय करेंगे हार जीत
दौसा सीट पर मीणा और एससी मतदाता बहुल संख्या में है। राजनीतिक एक्सपर्ट्स मानते हैं मीणा मतदाता लामबंद होकर जगमोहन मीणा को वोट कर सकते हैं क्योंकि कांग्रेस ने बीते चुनावों मीणा वोटों को साधते हुए मुरारी लाल मीणा को मैदान में उतारा था। जबकि डीसी बैरवा को एससी वोटर्स का साथ मिल सकता हैं। हालांकि इन दोनों जातियों के अलावा इस सीट पर ब्राह्मणों की संख्या 40 हजार है। वैसे तो ये वोट हमेशा से बंटता रहा है लेकिन इस बार कहा जा रहा है शंकरलाल शर्मा का टिकट कटने से बाह्मण मतदाता बीजेपी से नाराज हैं। ऐसे में ये नाराजगी कांग्रेस के लिए वरदान साबित होगी या नहीं ये तो रिजल्ट बताएगा। बाह्मणों के बाद यहां वैश्य वोटर्स आते हैं जो करीब 18 हजार के आसपास हैं। इस बार दोनों ही पार्टियों ने समान्य वर्ग के कैंडिडेट को मैदान में नहीं है। ऐसे में ये दोनों जातियां जिसके पक्ष में जाएंगी जीत उसकी होगी।
दौसा पर रहा बीजेपी का कब्जा
इतिहास के पन्नो को पलटे तो दौसा में ज्यादातर बीजेपी ने जीत दर्ज की है। पहले ये सीट अनूसूचित के लिए आरक्षित थी। उस वक्त भी बीजेपी का दबदबा रहता था लेकिन मुरारीलाल मीणा के दौसा आने के बाद स्थितियों में बदलाव हुआ। पहले वह बसपा की टिकट पर जीते और फिर दो बार कांग्रेस से विधायक बनें। इस सीट पर एक बार शंकरलाल शर्मा ने भी जीत हासिल की है। ये सीट कांग्रेस के लिए इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यहां पर गुर्जर मतदाताओं की संख्या 20-25 हजार के आसपास है। इसलिए सचिन पायलट ने दौसा में पूरी ताकत झोंक दी है। बहरहाल, दौसा में वोटिंग समाप्त हो चुकी है, चुनाव जातिगत समीकरणों में उलझा नजर आ रहा है। ऐसे में यहां कौन बाजी मारता है,ये देखना दिलचस्प होगा।