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झुंझुनूं और चुरु का चुनावी पारा क्या दे रहा संकेत,अलवर में कौन मार रहा बाजी, देखिए गणित

झुंझुनूं लोकसभा भी उन सीटों में शामिल है, जहां कांग्रेस और भाजपा में अच्छी टक्कर होगी। भाजपा से शुभकरण चौधरी और कांग्रेस से विधायक बृजेंद्र ओला मैदान में हैं। शेखावाटी में ओला परिवार की राजनीतिक विरासत का प्रभाव है। बृजेंद्र के पिता शीशराम ओला इसी सीट से 1996 से 2009 तक लगातार सांसद रहे थे।

झुंझुनूं और चुरु का चुनावी पारा क्या दे रहा संकेत,अलवर में कौन मार रहा बाजी, देखिए गणित

झुंझुनूं लोकसभा भी उन सीटों में शामिल है, जहां कांग्रेस और भाजपा में अच्छी टक्कर होगी। भाजपा से शुभकरण चौधरी और कांग्रेस से विधायक बृजेंद्र ओला मैदान में हैं। शेखावाटी में ओला परिवार की राजनीतिक विरासत का प्रभाव है। बृजेंद्र के पिता शीशराम ओला इसी सीट से 1996 से 2009 तक लगातार सांसद रहे थे।

ओला और चौधरी के जरिए दोनों बड़ी पार्टियों ने सामाजिक समीकरणों को भी साधने का प्रयास किया है। भाजपा ने 2019 में तत्कालीन सांसद संतोष अहलावत का टिकट काट कर नरेंद्र कुमार को मौका दिया था। पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें, तो कांग्रेस ने इस लोकसभा क्षेत्र में शामिल 8 में से 6 जीती थीं। ऐसे में कांग्रेस का प्रदर्शन भी बृजेंद्र ओला का उत्साह बढ़ा रहा है।

दोनों प्रत्याशियों ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी हाथ आजमाया था। झुंझुनूं विधानसभा सीट से ओला जीत गए और शुभकरण चौधरी उदयपुरवाटी से हार गए थे। सांसद नरेंद्र कुमार का टिकट कटने का कारण भी विधानसभा चुनाव की हार थी।  ज्योति मिर्धा के साथ सहानुभूति और मोदी लहर, बेनीवाल को कांग्रेस वोट बैंक का सहारा है।बीजेपी प्रत्याशी ज्योति मिर्धा चुनाव में मोदी लहर और राम मंदिर निर्माण के साथ ही अपनी तीन हार को भी बड़ा मुद्दा बनाने के प्रयास में हैं।

इमोशनल कार्ड खेलते हुए वो खुद को चिड़िया बताते हुए जनता से अपील करती हैं कि इस चिड़िया को मारना या ज़िंदा रखना आपके हाथ है।इस अपील का असर भी अब दिखने लगा है। इसके उलट हनुमान बेनीवाल के साथ अब खुद के जनाधार के साथ ही कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक जुड़ गया है।साल 2019 में हनुमान बेनीवाल ने BJP के NDA अलायंस के साथ RLP प्रत्याशी के तौर पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था।उस समय डॉक्टर ज्योति मिर्धा ही बतौर कांग्रेस प्रत्याशी उनके सामने मैदान में थीं। ऐसे में नागौर में एक बार फिर 'वही घोड़े और वही मैदान' है, लेकिन प्रत्याशियों के पाले बदल गए हैं।

चूरू का चुनावी पारा क्या कहता है ? 

यह सीट हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव की लपटों से दहक रही है। मुद्दों से ज्यादा पिछले विधानसभा चुनाव में राजेंद्र राठौड़ की तारानगर सीट से हार और उसके बाद कस्वां की बीजेपी से टिकट कटने का विवाद पूरे क्षेत्र में छाया हुआ है। कस्वां के लिए ये चुनाव नाक का सवाल बन गया है, तो राजेंद्र राठौड़ के लिए प्रतिष्ठा का।झाझड़िया के लिए प्रचार कर रहे राठौड़ चूरू में डेरा डाले हुए हैं। कभी नाम लेकर तो कभी बिना नाम लिए कस्वां पर निशाना साध रहे हैं। फिर इसके बाद कस्वां पलटवार करते हैं। इससे मामला कस्वां वर्सेस राठौड़ होता जा रहा है।

राहुल कस्वां के टिकट कटने को लेकर वोटर्स में दो तरह के पक्ष सामने आ रहे हैं। वोटर्स का एक धड़ा पुराने चेहरे का टिकट कटने और नए चेहरे को मौका देने के भाजपा के कदम का वेलकम कर रहा है।वोट बैंक के नजरिए से देखें तो चूरू सीट पर सियासत किसी और ही दिशा में जा रही है। यहां मुकाबला एक ही समाज से जुड़े दो चेहरों के बीच है, लेकिन जातीय वोटों का ध्रुवीकरण देखने को मिल रहा है। इस ध्रुवीकरण को हवा दे रहा है, विधानसभा चुनाव के बाद कस्वां और राठौड़ के बीच का विवाद।

राजपूत समाज राठौड़ की हार का जिम्मेदार कस्वां को मान रहा है। इधर, कस्वां का टिकट कटने के बाद से जाट समाज नाराज है। समाज कस्वां का टिकट कटने के मामले में राठौड़ को जिम्मेदार मान रहा है।

इन राजनीतिक परिस्थितियों में टिकट कटने से जाट समाज की सहानुभूति कस्वां और राठौड़ की हार के कारण राजपूत समाज की सहानुभूति का फायदा बीजेपी प्रत्याशी झाझड़िया को मिल रहा है। झाझड़िया को राजपूत वोटर्स का साथ तो मिल रहा है, लेकिन खुद के समाज को साधने में उन्हें मशक्कत करनी पड़ रही है। 

अलवर का चुनावी माहौल समझिये, मजबूत दिख रही कांग्रेस

चुनावी समीकरण देखें तो यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस के विधायक जीते हैं। भाजपा महज 3 सीटों पर है, लेकिन यह जीत का पैमाना नहीं है। पिछले लोकसभा के परिणाम देखें तो जहां से कांग्रेस के विधायक जीते थे, वहां भाजपा प्रत्याशी महंत बालकनाथ ने ज्यादा वोट हासिल किए थे। बहरोड़ और मुंडावर में एक लाख 80 हजार वोटों से भाजपा ने लीड बनाई थी।

ललित यादव राठ क्षेत्र से आते हैं। मुंडावर, बहरोड़ और बानसूर में उनकी पकड़ है, लेकिन अलवर शहर, अलवर ग्राामीण, रामगढ़ में उनकी सीधी पकड़ नहीं है। यहां पर वे पार्टी कार्यकताओं व स्थानीय नेताओं के भरोसे हैं। अलवर शहर और राजगढ़ में भंवर जितेंद्र सिंह की जरूर अच्छी पकड़ है।

भूपेंद्र यादव के लिए यह प्लस पॉइंट है कि शहरी क्षेत्रों में बीजेपी मजबूत स्थिति में है। वे मोदी की गारंटीदेकर प्रचार में जुटे हैं। मोदी की नजदीकी होने के कारण पार्टी के बड़े नेता से लेकर छोटे से छोटा कार्यकर्ता उनके साथ लगा हुआ है। उनके समर्थन में अमित शाह सभा कर चुके हैं।अलवर शहर विधायक संजय शर्मा और पूर्व विधायक रामहेत यादव दोनों भूपेंद्र यादव के नजदीकी माने जाते हैं। दोनों पूरी ताकत से उनके चुनाव में साथ हैं। हालांकि महंत बालकनाथ को राजस्थान सरकार में कोई भी मंत्री पद नहीं मिलने की वजह से उनके समर्थकों में थोड़ा उत्साह कम है।

इस सीट पर भले ही सीधा मुकाबला बीजेपी-कांग्रेस में है लेकिन तीसरे फैक्टर के तौर पर बसपा भी मौजूद है। मेव मुस्लिम और एससी-एसटी वोटरों की अलवर लोकसभा क्षेत्र में बड़ी तादाद है।पारंपरिक तौर पर दोनों को कांग्रेस अपना वोट बैंक मानती है, लेकिन यहां मेव लीडर तैयब हुसैन के बेटे फजल हुसैन बसपा के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं। फजल हुसैन की मेव वोटर्स पर अच्छी पकड़ है। वहीं, बसपा पार्टी के जरिए एससी-एसटी वोट तैयब को मिल सकते हैं। राजनीतिक एक्सपर्ट का कहना है कि इस फैक्टर से कांग्रेस के वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी साबित हो सकती है।