Trendingट्रेंडिंग
वेब स्टोरी

Trending Web Stories और देखें
वेब स्टोरी

पूर्वांचल के रण में पिछड़ों का पुरोधा कौन? BJP के सहयोगी दलों की होनी है अग्निपरीक्षा

उत्तर प्रदेश की सियासत में कांशीराम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन कर एक नए तरह की राजनीति शुरू की. पार्टी को नब्बे के दशक में सफलता भी मिली, उसके बाद ही कांशीराम की तर्ज पर ही बसपा से निकले कई नेताओं ने जाति आधारित पार्टियों का गठन किया. 

पूर्वांचल के रण में पिछड़ों का पुरोधा कौन? BJP  के सहयोगी दलों की होनी है अग्निपरीक्षा

उत्तर प्रदेश की सियासत में कांशीराम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन कर एक नए तरह की राजनीति शुरू की. पार्टी को नब्बे के दशक में सफलता भी मिली, उसके बाद ही कांशीराम की तर्ज पर ही बसपा से निकले कई नेताओं ने जाति आधारित पार्टियों का गठन किया. पूर्वांचल इलाक में ऐसे दल अपनी जड़े जमाने में कामयाब हैं और अगले दो चरण में उनकी सियासी ताकत की परीक्षा होनी है. राजनीतिक दलों ने पूर्वांचल पर पूरा फोकस कर दिया है, जहां चुनावी रण में मोदी-योगी के साथ-साथ पिछड़ी जाति की राजनीति करने वाले ओमप्रकाश राजभर से लेकर अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद की अग्निपरीक्षा होनी है.

देश में लोकसभा सीटों का सबसे बड़ा गढ़ उत्तर प्रदेश है. या यूं कहें कि देश की सत्ता पाने का सियासी गलियारा. जहां की राजनीति और सीटों पर फतह करने का समीकरण ही दिल्ली के दरबार का बंद दरवाजा खोलती है. देश की सियासत के सबसे हॉट प्रदेशों में से एक यूपी के साथ शुरुआत से ही यह विड़ंबना रही है कि यहां के सियासी दांवपेंच मुद्दों से अलग जाति और धर्म के समीकरणों पर हावी रहे है. यूपी विकास और आधुनिकता के स्तर पर कितना भी आगे निकल गया हो. लेकिन आज तक जातिगत सियासत के मकड़जाल में अब भी उलझा हुआ है. प्रदेश में जीत हासिल करने की मास्टर चाभी है पिछड़ी जातियों के वोट. यूपी में जीत का फैक्टर पिछड़ों का वोट बैंक तय करता है. जिस पाले में पिछड़ों का साथ इसकी ही चुनावी रण में जय जय. ऐसे में 2024 के सियासी रण में कई नेता पिछड़ों के अगुवा बनकर चुनावी हुंकार भर रहे हैं. 

पूर्वांचल में ओबीसी सियासत का खेल !

पूर्वांचल की सियासत ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है और पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पिछड़ा वर्ग में प्रभावी रिस्पॉस डाला था. नतीजतन बीजेपी केंद्र और राज्य की सत्ता पर मजबूती से काबिज हुई. ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने भी पूर्वांचल के सियासी समीकरण को देखकर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. वहीं सपा ने अपने कोटे की 22 लोकसभा सीटों में से 14 सीट पर गैर-यादव ओबीसी के प्रत्याशी उतार रखा है.

वहीं कांग्रेस ने अपने कोटे की चार सीटों में दलित- ओबीसी- भूमिहार के एक-एक उम्मीदवार मैदान में उतार रखे हैं. वहीं दूसरी ओर इस बार पूर्वांचल में विपक्ष के इंडी गठबंधन की सियासी बिसात से पार पाने के लिए बीजेपी के सहयोगी नेताओं ओम प्रकाश राजभर से लेकर अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद तक को असल परीक्षा से गुजरना पड़ेगा. लेकिन विपक्ष को मुकाबले को सत्ता पक्ष का दांव भी काफी मजबूत माना जा सकता है, क्योंकि तीनों ही नेता ओबीसी समुदाय के अलग-अलग जातियों के बीच आधार रखते हैं और विपक्ष को कड़ा मुकाबला देने में सक्षम हैं.

पूर्वांचल में कौन कहां काबिज?

बीजेपी के खाते में सीटें 

बस्ती, आजमगढ़, संतकबीरनगर, सलेमपुर, महाराजगंज, बलिया,गोरखपुर, मछलीशहर, कुशीनगर, चंदौली, देवरिया, वाराणसी, बासगांव, भदोही.

बसपा के खाते में सीटें
लालगंज, घोसी, जौनपुर, गाजीपुर

अपना दल के खाते में सीटें
मिर्जापुर, राबर्ट्सगंज
 
पूर्वांचल के रण में पिछड़ों का पुरोधा कौन ? 

उत्तर प्रदेश की सियासत पूरी तरह से ओबीसी वोटबैंक के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. वहीं यूपी के पूर्वांचल में तो इनका दबदबा है, ऐसा माना जाता है कि सूबे में करीब 50 फीसदी ये वोट बैंक जिस भी पार्टी को मिल जाता है सत्ता उसी को मिलती है. वहीं इस बार 2024  के सियासी कुरुक्षेत्र में एनडीए गठबंधन में शामिल सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) की प्रतिष्ठा दांव पर है. ये सभी दल ओबीसी वोट बैंक या यूं कहें की पिछड़ों की राजनीति करते हैं. इन दलों के पुरोधा अपनी अपनी जातियों को साधने की कोशिश में जुटे हैं. 

विपक्ष के कई बड़े चेहरों का होगा इम्तिहान!

वहीं प्रदेश में कुर्मी समुदाय के बीच सियासी आधार रखने वाला अपना दल दो गुटों में बंटा हुआ है. जिसमें एक धड़ा केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की अगुवाई में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहा है, तो दूसरा कृष्णा पटेल का है. वहीं दूसरी ओर निषाद पार्टी का भी अपना मजबूत वोट बैंक है.16 सीट पर निषाद समाज का प्रभाव है. इनमें से अधिकांश सीट पूर्वांचल में ही हैं और  निषाद पार्टी के सहयोग के बिना चुनाव मुश्किल है. 

लेकिन असली परीक्षा ओमप्रकाश राजभर की है. राजभर की सुभासपा ने 2017 के चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 4 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इस बार सुभासपा से राजभर के बेटे अरविंद राजभर घोसी लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं और यहां सपा के अजय राय और बसपा से बाल कृष्ण चौहान से त्रिकोणीय मुकाबला है. ऐसे में राजभर को अपने समुदाय के वोट न सिर्फ अपने बेटे के लिए बल्कि अन्य सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों के लिए भी जुटाने की चुनौती होगी.

पूर्वांचल में सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष के कई चेहरों की भी प्रतिष्ठा दांव पर है. एक ओर स्वामी प्रसाद मौर्य एकला चलो का राग छेड कर मैदान में दांवेदारी पेश कर रहे हैं. मौर्य बड़े ओबीसी नेताओं में से एक हैं और 2019 के चुनाव में स्वमी प्रसाद ने बिटिया संघमित्रा मौर्य को बदायूं से जीत दिलाने में कामयाब हुए थे. सपा से रिश्ता टूटने के बाद अब 24 के चुनाव में स्वामी अकेले चुनाव में हुंकार भर रहे हैं और भाजपा समेत सभी प्रतिद्वंद्वियों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं. साथ ही साथ विपक्ष के पीडीएम से अपना दल (कमेरावादी) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल और पल्लवी पटेल भी इस चुनाव में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में जुटी हैं. जहां ओवैसी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के सियासी प्रयोग की भी इस चुनाव में परीक्षा होगी.