राजस्थान में भाजपा की नहीं लगी हैट्रिक,कांग्रेस का 3.67 फीसदी वोट शेयर बढ़ा तो शून्य से 8 पर पहुंच गई
राजस्थान में लोकसभा चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले रहे। भाजपा हैट्रिक नहीं लगा पाई। एक दशक से राजस्थान भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित राज्य था।
राजस्थान में लोकसभा चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले रहे। भाजपा हैट्रिक नहीं लगा पाई। एक दशक से राजस्थान भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित राज्य था। भाजपा छह माह पहले हुए विधानसभा चुनाव जीतकर प्रदेश में सत्तासीन हुई। फिर क्या कारण रहे कि भाजपा 25 सीटों से सिमटकर 14 पर आ गई। भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी अंचल में हुआ है। यहां भाजपा जनता की नब्ज समझने में विफल रही।
कांग्रेस का 3.67 फीसदी वोट बढ़ा
भाजपा ने वर्ष 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटें जीती थीं। जबकि इस बार कांग्रेस ने रणनीति के तहत भाजपा को जातियों के गणित में उलझा दिया। जिससे भाजपा को एक ही झटके में 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और अन्य बड़े केंद्रीय नेताओं की ताबड़तोड़ रैलियां व रोड शो किए, लेकिन भाजपा उस अनुपात में जीत नहीं पाई। कांग्रेस ने पूर्वी राजस्थान की पांच सीटों में से चार भरतपुर, दौसा, टोंक-सवाई माधोपुर और करौली- धौलपुर कब्जे में कर ली। केवल एक अलवर सीट भाजपा के खाते में गई। वहीं शेखावाटी की तीनों सीटें सीकर, झुंझुनू और चूरु कांग्रेस ने जीती। वर्ष 2019 के मुकाबले भाजपा के 9.83 प्रतिशत वोट शेयर कम हुआ तो उसने 10 सीटें गंवा दी। जबकि 3.67 फीसदी वोट बढ़ा तो कांग्रेस शून्य से 8 पर पहुंच गई।
गठबंधन का फायदा कांग्रेस को मिला
कांग्रेस गठबंधन 25 में 11 सीट जीतकर खुश है। कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा कारण दुष्प्रचार रहा। कांग्रेस ने आरक्षण समाप्त करने और संविधान में बदलाव करने का शिगूफा छोड़कर एस- एसटी वोटों को अपने पक्ष में लामबंद किया। नतीजा यह रहा कि एससी की आरक्षित 04 में 03और एसटी की 03 में 02 सीटें कांग्रेस गठबंधन के खाते में चली गई। कांग्रेस ने साम-दाम दंड भेद की नीति अपनाते हुए सीपीआईएम, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारतीय आदिवासी पार्टी से गठबंधन किया और इनके लिए सीकर, नागौर व बांसवाड़ा सीट छोड़ी, इन सीटों पर कांग्रेस के सभी सहयोगी दल जीतने में सफल रहे। भाजपा को महज 14, कांग्रेस को 8, बीएपी, आरएलपी व माकपा को 1-1 सीट पर जीत मिली। राजस्थान में भाजपा सरकार बनने के बाद पार्टी उत्साहित थी। इस बार भी लक्ष्य सभी 25 सीटें जीतने का था। वहीं कांग्रेस ने क्षेत्र में पकड़ रखे वाले विधायकों सहित अच्छे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। कांग्रेस विधायकों में से मुरारी लाल मीणा, हरीश मीणा और बृजेंद्र ओला जीत गए और केवल ललित यादव हारे। इससे कांग्रेस को तीन सीटों का फायदा मिला।
भाजपा का अतिआत्मविश्वास और लचर संगठन
राजस्थान में भाजपा की हैट्रिक में सबसे बड़ी बाधा कार्यकर्ताओं का अतिआत्मविश्वास और लचर संगठन भी रहा है। उपर से लेकर नीचे तक कार्यकर्ता यह मानकर चल रहे थे कि भाजपा अबकी बार 400 पार कर रही है। कार्यकर्ताओं को सुरक्षित मनः स्थिति से बाहर निकालने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई बार अपने भाषणों में कहा कि- जमीन पर कड़ी मेहनत करना पड़ेगी। सभी को लगना पड़ेगा। अकेले मोदी से काम नहीं चलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गोरसिया कहते हैं- “प्रदेश में कार्यकर्ताओं का ओवर कांफिडेंस सीटें कम होने का एक कारण रहा। पूरा चुनाव मोदी पर छोड़ दिया गया। किसी एक चेहरे के भरोसे चुनाव जीतने और एंटी इनकंबेंसी नहीं होती है यह मिथक भी इस बार टूट गया। कांग्रेस ने योजनाबद्ध तरीके से चुनाव को जातिवाद का रंग दिया। इसका नुकसान भाजपा को हुआ”।
लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा प्रदेश संगठन में बदलाव से नुकसान
राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा संगठन में बड़े बदलाव हुए। प्रदेश की बारीकी से समझ रखने वाले बड़े नेताओं को साइट लाइन कर दिया गया। प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर और प्रदेश प्रभारी अरुणसिंह को लोकसभा चुनाव से पहले हटाया गया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां को प्रदेश चुनाव प्रभारी बनाकर हरियाणा भेजा गया। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वंसुधरा राजे को झालावाड़- बारां तक ही सीमित कर दिया। प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी स्वयं चुनाव लड़ने में व्यस्त हो गए। ऐसे में टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रबंधन तक में कई खामियां रह गई। कार्यकर्ता ठीक दिशा में काम नहीं कर पाए। कांग्रेस ने चुनाव में 22प्रत्याशी नये उतारे। तीन सीटें गठबंधन को दी। वहीं भाजपा बहुत ज्यादा प्रयोग नहीं कर पाई। ज्यादातर उम्मीदवार रिपिट किए गए। उम्मीदवारों के प्रति विरोधी लहर तो थी ही उनके पास खुद का विजन और काम भी नहीं था। वे पूरी तरह प्रधानमंत्री मोदी के सहारे ही थे। पार्टी ने भी पूरी तरह मोदी फॉर्मूला लागू किया था। हाल ही में विधानसभा चुनाव में जीते मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मतदाताओं ने इस फॉमूले को स्वीकार किया, लेकिन राजस्थान में जनता ने इसे रद्द कर दिया।
जाट- राजपूत विवाद से ज्यादा नुकसान
राजस्थान में भाजपा के पिछड़ने का एक कारण जातिगत समीकरण भी है। भाजपा इस रणनीति कमजोर साबित हुई। कांग्रेस ने जातिगत ध्रुवीकरण का सीधा और भरपूर फायदा उठाया। लगभग हर सीट पर वोट बैंक जातियों में बंटा था। दौसा, चूरू, बाड़मेर, सीकर, भरतपुर, दौसा-सवाईमाधोपुर जैसी सीटों पर चुनाव जातियों में बंट गया। ऐसे माहौल में भाजपा की रणनीति और तैयारी कमजोर पड़ गई। भाजपा स्थानीय के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों के भरोसे चुनाव में गई। जबकि कांग्रेस ने इसे स्थानीय मुद्दों को हवा देते चुनाव को जातिवाद के रंग में रंग दिया। भाजपा में प्रदेश की जातिगत खांटी राजनीति को समझ कर सुलझाने वाला कोई नेता नहीं था। इससे परंपरागत राजनीतिक समीकरण बिगड़ गए।
जाट बनाम राजजपूत विवाद का दिखा असर
भाजपा ने एक मार्च को लोकसभा की पहली सूची जारी की। इसके साथ ही राजस्थान में राजपूत- जाट विवाद शुरूआत हो गया। लगातार चुनाव जीत रहे चूरू सांसद राहुल कस्वां का टिकट काटना भाजपा को भारी पड़ गया। इसके बाद अलग-अलग इलाकों में पूरा चुनाव जाति केंद्रित हो गया। कांग्रेस ने इसे हवा दी और जाट बहुल शेखावाटी अंचल में इसे जाट बनाम राजपूत बना दिया। भाजपा इस बात को समझकर डैमेज कंट्रोल करने विफल रही। बल्कि जीत के अति विश्वास में इस आग को और भड़का दिया। इस कारण कई सीटें भी हारे। जाट बनाम राजपूत विवाद न सिर्फ चूरू बल्कि पूरे राजस्थान में फैल गया।
किरोड़ी लाल मीणा का मुद्दा भी हावी रहा
उधर, किरोड़ी मीणा को कैबिनेट में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं मिलने से अपमान का मुद्दा भी पूर्वी राजस्थान में हावी रहा। मीणा समाज इस बात से नाराज है कि भाजपा ने बाबा को उचित सम्मान नहीं दिया। लिहाजा डॉ. मीणा के पूरी ताकत लगाने के बावजूद मीणा भाजपा के साथ नहीं आए। दरअसल किरोड़ी के कद और उम्र के हिसाब से मीणा समाज की अपेक्षा थी उन्हें या तो उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा या अच्छा मंत्रालय मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। किरोड़ी की उदासीनता और अंदरखाने उनकी नाराजगी ने पूर्वी राजस्थान में भाजपा को साफ कर दिया। इसके विपरित कांग्रेस मार्शल कौम जाट, मीणा और गुर्जरों को अपने पक्ष में लाने में कामयाब रही। पूर्वी राजस्थान की 5 में से 4 सीटों पर गुर्जरों का और शेखावाटी की 3 सीटों पर जाटों का एकमुश्त समर्थन कांग्रेस गठबंधन को मिला है। पूर्वी राजस्थान में सचिन पायलट की पकड़, शेखावाटी में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा द्वारा बनाए गए माहौल का फायदा मिला। भाजपा के परंपरागत वोट बैंक रहे राजपूतों ने इस बार पूरे उत्साह से चुनाव में भागीदारी नहीं निभाई। भाजपा नेताओं से नाराजगी के कारण राजपूत वोट बैंक वोट डालने नहीं निकले।
किस पार्टी को कितना वोट शेयर
2019 में भाजपा को 59.07 प्रतिशत, कांग्रेस को 34.24 प्रतिश वोट मिले थे। इस बार भाजपा को 49.24 प्रतिशत यानी 9.83 फीसदी कम वोट मिले, इससे 10 सीटों का घाटा हुआ। कांग्रेस का वोट प्रतिशत 3.67 प्रत बढ़कर 37.91 प्रतिशत हो गया, इससे सीटें शून्य से 8 पर पहुंच गई हैं। प्रदेश में पहले चरण की 5.44 प्रतिशत कम मतदान का बड़ा फायदा कांग्रेस को मिला। पहले चरण की 12 सीटों में पूर्वी राजस्थान की ज्यादातर सीटें थीं तो कांग्रेस ने इसमें 8 जीतीं। दूसरे चरण में भाजपा ने सभा, रैलियां, कार्यकर्ता सम्मेलन बढ़ाए, जबकि कांग्रेस ने राहुल गांधी तक की सभा नहीं की। भाजपा ने इस चरण में 13 में 10 सीटें जीतीं।
भाजपा ने चार मंत्री मैदान में उतारे
भाजपा इस बार चार केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारा। इनमें से जोधपुर से गजेंद्र सिंह शेखावत, अलवर से पहली बार चुनाव में उतरे भूपेंद्र यादव और बीकानेर से चौथी बार अर्जुनराम मेघवाल चुनाव जीते। जबकि बाड़मेर से कैलाश चौधरी तीसरे नंबर पर रहे, उन्हें कांग्रेस के उम्मेदाराम ने हराया। दूसरे स्थान पर निर्दलीय रवींद्र भाटी रहे।
11 सांसदों के टिकट काटे 4 के बदले
भाजपा ने 11 सांसदों के टिकट काटे और चार के बदले। इनमें जयपुर, जालोर, उदयपुर व भीलवाड़ा में ही जीत मिली, जबकि चूरू, गंगानगर, झुंझुनूं, भरतपुर, दौसा, करौली-धौलपुर, बांसवाड़ा में हार मिली। बदले गए चेहरों में अलवर, जयपुर ग्रामीण और राजसमंद भाजपा ने जीती, जबकि नागौर में हार मिली।
पार्टी ने महिला उम्मीदवारों पर लगाया दांव
इस बार भाजपा की 5, कांग्रेस की 3 सहित कुल 19 महिला प्रत्याशी मैदान में थी। इनमें से 16 महिलाएं हारीं, सिर्फ भाजपा की 2 और कांग्रेस की एक महिला उम्मीदवार जीतीं। भाजपा की जयपुर से मंजू शर्मा और राजसमंद से महिमा सिंह जीतीं। कांग्रेस की भरतपुर से संजना जाटव सांसद बनीं।
दल बदल कर आये थे ये लोग
राजस्थान में चार प्रत्याशियों ने दल बदला था। इनमें से भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए राहुल कस्वां और आरएलपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए उम्मेदाराम नागौर से जीते। वहीं भाजपा से कांग्रेस में आए प्रहलाद गुंजल, कांग्रेस से विधायकी छोड़ भाजपा में आए महेंद्रजीत सिंह मालवीया हारे।
किसको मिला कितना वोट प्रतिशत
भाजपा-49.24%, कांग्रेस -37.91%, माकपा- 1.97%आरएलपी-1.80%, बसपा- 0.74% मत मिले हैं। -नोटा को 0.84%, अन्य को 7.51% मत मिले।
कहां किसको मिली बड़ी जीत
सबसे बड़ी जीत :- महिमा कुमारी मेवाड़ राजसमंद (भाजपा), 3 लाख 92हजार 223, सीपी जोशी चित्तौड़गढ़ (भाजपा) 3 लाख 89 हजार 877, दुष्यंत सिंह झालावाड़-बारां (भाजपा), 3 लाख 70 हजार 989 मतों से।
सबसे छोटी जीत इनको मिली
सबसे छोटी जीत :- राव राजेंद्र सिंह जयपुर ग्रामीण (भाजपा), 1615 वोट, बृजेंद्र ओला झुंझुनूं (कांग्रेस), 18 हजार 235 वोट, ओम बिरला कोटा (भाजपा), 41 हजार 974 मत।
किस पार्टी को मिली कितनी सीटें
भाजपा- 14, कांग्रेस- 08, आरएलपी- 01, सीपीआईएम- 01, बीएपी- 01 सीट जीतीं।