एक ऐसा किला जहां शाम होते ही जाग जाती हैं आत्माएं... आज भी क्यों माना जाता है कि भानगढ़ किले हर हिस्सा भूतिया है...
हालाँकि असाधारण गतिविधियों का आकलन करना कठिन है। जब सरकार आपको कुछ स्थानों से दूर रहने के लिए कहती है। तो कुछ ऐसा है जो सही नहीं है। भानगढ़ किला एक ऐसी जगह है, जहां आपको सूर्यास्त के बाद वहां न रुकने की चेतावनी देने वाले साइनबोर्ड भी देखने को मिल जाएंगे। किले का इतिहास 17वीं शताब्दी का है और निश्चित रूप से यह कमजोर दिल वाले लोगों के लिए जगह नहीं है। यहां इस किले के बारे में कुछ डरावने तथ्य हैं। जो आपको जानना चाहिए यदि आप जल्द ही किले की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं।
भानगढ़ किला जहां शाम होते ही जाग जाती हैं आत्माएं
हालाँकि असाधारण गतिविधियों का आकलन करना कठिन है। जब सरकार आपको कुछ स्थानों से दूर रहने के लिए कहती है। तो कुछ ऐसा है जो सही नहीं है। भानगढ़ किला एक ऐसी जगह है, जहां आपको सूर्यास्त के बाद वहां न रुकने की चेतावनी देने वाले साइनबोर्ड भी देखने को मिल जाएंगे। किले का इतिहास 17वीं शताब्दी का है और निश्चित रूप से यह कमजोर दिल वाले लोगों के लिए जगह नहीं है। यहां इस किले के बारे में कुछ डरावने तथ्य हैं। जो आपको जानना चाहिए यदि आप जल्द ही किले की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं।
अगर आप दिल्ली में हैं और अपने आने वाले वीकेंड को अनोखा बनाना चाहते हैं। तो आप भानगढ़ किले की रोड ट्रिप प्लान कर सकते हैं। यह किला राजस्थान में घूमने आए पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है। हम सभी ने भानगढ़ किले की कहानियों के बारे में कई बार सुना और पढ़ा है। यह जगह काफी भूतिया है। यह किला 400 साल पुराना है। कहते हैं यहां पर आत्माएं पर्यटकों के साथ बात करने की कोशिश करती हैं। अगर आप अपने जीवन में ऐसा ही कुछ अनुभव करना चाहते हैं। तो आपको अपनी लाइफ में एक बार इस जगह की यात्रा जरूर करनी चाहिए।
जब आप यहां होंगे तो आप इसकी राजसी वास्तुकला को देखकर आश्चर्यचकित हो सकते हैं। फिर भी कई लोग कहते हैं कि वे चिंता की भावना से दबे हुए हैं और वे अक्सर चिंतित और बेचैन महसूस करते हैं। कुछ आगंतुकों ने यह भी बताया कि उन्हें एक अजीब सा व्याकुलता का एहसास होता है। जैसे कि कोई उनका पीछा कर रहा हो। यही कारण है कि इसकी लोकप्रियता के बावजूद, पर्यटक किले के परिसर में लंबे समय तक घूमने से बचते हैं।
भानगढ़ किला का इतिहास
जिस धरती पर भानगढ़ किला खड़ा है। वह गुरू बालूनाथ नामक शक्तिशाली तपस्वी का था। किले का निर्माण शुरू करने से पहले माधो सिंह ने तपस्वी की अनुमति मांगी थी। तपस्वी ने माधो सिंह को एक शर्त के साथ अनुमति दी। शर्त यह थी कि किले की छाया कभी भी तपस्वी के घर पर न पड़े वरना बड़ी दुघर्टना हो सकती है। हालांकि उनके उत्तराधिकारी अजब सिंह ने इस शर्त की अनदेखी की और मजबूत दीवारों के साथ किला बनवाया। इन दीवारों की छाया तपस्वी के घर पर पड़ी, जिसने भानगढ़ क्षेत्र को पूरी तरह से तबाह कर दिया था।