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Sawai Madhopur News: विश्व बाघ दिवस पर जानिए रणथंभौर टाइगर रिजर्व के बारे में

रणथंभौर टाईगर रिजर्व को वैसे तो कौन नहीं जानता । बाघों की अठखेलियों को लेकर रणथंभौर विश्व पटल पर अपनी एक खास पहचान बना चुका है । वन्यजीव प्रेमी राजस्थान के रणथंभौर को बाघों की नर्सरी के नाम से भी पहचानते हैं क्योंकि रणथंभौर में लगातार बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।

Sawai Madhopur News: विश्व बाघ दिवस पर जानिए रणथंभौर टाइगर रिजर्व के बारे में

विश्व बाघ दिवस पर बाघों के संरक्षण को लेकर आज विश्व के कई देशों में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किये गये । भारत में भी जगह जगह विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गए । बाघों की जब भी बात होती है तो राजस्थान के सवाई माधोपुर स्थित रणथंभौर की यादें जहन में ताजा हो जाती हैं। बाघों के स्वछंद विचरण को लेकर विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बना चुके रणथंभौर टाईगर रिजर्व की बात ही कुछ अलग है । 1734 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए रणथंभौर में वर्तमान में तकरीबन 78 बाघ-बाघिन और शावक हैं और यहाँ लगातार बाघों के कुनबे में बढ़ोतरी हो रही है । 

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बाघों की नर्सरी

रणथंभौर टाईगर रिजर्व को वैसे तो कौन नहीं जानता । बाघों की अठखेलियों को लेकर रणथंभौर विश्व पटल पर अपनी एक खास पहचान बना चुका है । वन्यजीव प्रेमी राजस्थान के रणथंभौर को बाघों की नर्सरी के नाम से भी पहचानते हैं क्योंकि रणथंभौर में लगातार बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। रणथंभौर के बाघ राजस्थान के अन्य बाघ अभ्यारण्यों की जनसंख्या में भी योगदान देते हैं।

रणथंभौर को आबाद करने में ग्रामीणों का भी है योगदान

रणथंभौर में बाघों की संख्या बढ़ाने में यहाँ बाघों को मिल रहा पर्यावास बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। वन विभाग की मेहनत के साथ ही आस पास के ग्रामीणों में बाघों और पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता का भी अहम योगदान है । रणथंभौर से सटे गांवों के ग्रामीणों ने रणथंभौर को आबाद करने में अपना बहुत योगदान दिया है और यहाँ के ग्रामीणों ने रणथंभौर की वजह से अपना बहुत कुछ खोया है । यही वजह है कि यहाँ के ग्रामीण पर्यावरण और बाघों के संरक्षण को लेकर बेहद सजग और सचेत है ।

1980 में मिला नेशनल पार्क का दर्जा

बाघ संरक्षण को लेकर बात करें, तो भारत में बाघों के संरक्षण को लेकर टाईगर प्रोजेक्ट की शुरुआत वर्ष 1973 में हुई थी और इसी वर्ष रणथम्भौर राजस्थान का पहला टाईगर रिजर्व घोषित किया गया था । इससे पहले रणथम्भौर को पहली गेम सेंचुरी होने का गौरव भी प्राप्त है। वर्ष 1980 में रणथम्भौर टाईगर रिजर्व को नेशनल पार्क का दर्जा मिला। वहीं दुनिया का पहला एयर टाईगर री-लोकेशन भी रणथम्भौर से ही हुआ था। वर्ष 2008 में जब अलवर का सरिस्का टाईगर विहीन हो गया था तब रणथंभौर से ही टाईगर को ट्रेंकुलाइज कर सरिस्का के लिए भेजा गया था । रणथम्भौर से अब तक करीब 20 बाघों को री-लोकेट किया जा चुका है। जो प्रदेश के सरिस्का सहित मुकुन्दरा ,रामगढ़ अभ्यारण सहित अन्य जगह भेजे गए है ।

कई विदेशी हस्तियां भी कर चुकीं हैं दौरा
रणथंभौर उस वक्त सुर्खियों में आया था, जब 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी अपने पारिवारिक दोस्त अमिताभ बच्चन के परिवार और अपने अन्य दोस्तों के समूह के साथ रणथम्भौर आए थे । तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की एक सप्ताह की यात्रा ने रणथम्भौर को विश्व पटल पर ला दिया था । इससे पहले साल 1961 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और 1973 में नीदरलैंड के राजकुमार की रणथम्भौर यात्रा चर्चाओं में रह चुकी थी। साल 2000 में अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने रणथम्भौर में टाइगर सफारी का आनंद उठाया था ।

इसी साल NTCA का गठन

वर्ष 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह रणथम्भौर आए थे । इसी समय सुनीता नारायण के नेतृत्व में टाइगर टास्क फोर्स का गठन किया गया। इसी के साथ इसी साल देश में NTCA (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी) गठन किया गया । साल 2008 में रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से टाइगर को ट्रेंकुलाइज कर सरिस्का के लिए भेजा गया। यह दुनिया का पहला एयर टाइगर री-लोकेशन था। जिसके बाद रणथम्भौर से सरिस्का, मुकुंदरा, रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के लिए बाघ, बाघिन भेजे गए ।रणथम्भौर को राजस्थान की बाघों की नर्सरी भी कहा जाता है। यहाँ फिलहाल 78 बाघ बाघिन और शावक है ।

रणथम्भौर को बाघों से आबाद करने में वन विभाग की कड़ी मेहनत भी रही है। वनकर्मियों की कड़ी मेहनत और लगन के साथ ही यहाँ के लोगों में पर्यावरण और बाघ संरक्षण को लेकर जागरूकता का बाघों की आबादी बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । रणथंभौर को लेकर हाल ही में प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम में रणथंभौर का जिक्र किया था । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रणथंभौर का जिक्र करते हुए पर्यावरण एंव बाघ संरक्षण को लेकर यहाँ के लोगों की बढ़ती जनभागीदारी की तारीफ की थी । यही वजह है कि आज रणथंभौर बाघों से आबाद है और यहाँ लगातार बाघों की संख्या बढ़ रही है जो सेव दा टाईगर मुहिम को साकार करती नजर आ रही है ।

रिपोर्ट- बजरंग सिंह