Barmer News: राजस्थान के इस जिले का है गजब किस्सा, स्थानीय करते हैं भूतों की पूजा
बाड़मेर की चौहटन तहसील में एक खेजड़ी का पेड़ है, जिसके बारे में मान्यता है कि यहां भूतों का जमावड़ा होता है। चोहटन मठ के मुख्य पुजारी भावपुरी रात में गुप्त रूप से उन आत्माओं को खाना खिलाते थे।
राजस्थान राज्य भूतों की अनेक कहानियों से भरा पड़ा है। सदियों से यहां कि कई कहानियां प्रचलित भी हैं। ऐसी ही एक कहानी है बाड़मेर के खोड़ा भूत की। ये कहानी पास के एक मठ के एक मुख्य पुजारी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो हर रात भूतों को खाना खिलाता था। उनके शिष्य को रात में उनके गायब होने पर संदेह हुआ और एक शाम उन्होंने उनका पीछा किया। उन्होंने जो देखा वह खोड़ा भूत कथा की कथा बन गई।
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क्या है वजह ?
कथा के अनुसार, बाड़मेर की चौहटन तहसील में एक खेजड़ी का पेड़ है, जिसके बारे में मान्यता है कि यहां भूतों का जमावड़ा होता है। चोहटन मठ के मुख्य पुजारी भावपुरी रात में गुप्त रूप से उन आत्माओं को खाना खिलाते थे। अपनी गुप्त यात्राओं के दौरान भावपुरी ने यह सुनिश्चित किया कि किसी को भी उसके कार्यों के बारे में पता न चले, जिससे कहानी में रहस्य और बढ़ गया।
शिष्य ने देखी अजीब घटना
ऐसा माना जाता है कि जब भावपुरी के शिष्य डूंगरपुरी को अपने गुरु पर संदेह हुआ, तो उन्होंने मौके पर जाकर घटना देखी। उन्हें देखकर सभी भूत गायब हो गए। भूतों के बीच एक आत्मा वहां बनी रहती थी। जब भावपुरी मौके पर गए तो उन्हें एहसास हुआ कि भूत पहले ही गायब हो चुके थे। जब उसने उन्हें बुलाया तो एक ही आत्मा आगे आई। भावपुरी द्वारा पूछे जाने पर, लंगड़े भूत ने दावा किया कि उसे छोड़कर सभी आत्माएं गायब हो गईं। इसके बाद भावपुरी ने लंगड़े भूत को खेजड़ी के पेड़ के पास रहने का निर्देश दिया, जबकि वह खुद डूंगरपुरी महाराज के दर्शन करने गया।
वहां पहुंचने पर भावपुरी ने विनम्रतापूर्वक डूंगरपुरी के पैर पकड़ लिए। दुर्गापुरी ने कहा कि एक गुरु के लिए अपने शिष्य को इतना सम्मान देना अनुचित है। तब भावपुरी ने डूंगरपुरी का शिष्य बनने की अपनी इच्छा व्यक्त की। डूंगरपुरी ने जवाब दिया कि इस जीवनकाल में ऐसा नहीं हो सकता और इसे हासिल करने के लिए भावपुरी को पुनर्जन्म लेना होगा।
पुनर्रजन्म से जुड़ी है कहानी
कहा जाता है कि वहां एक सेठ नाम का एक स्थानीय व्यापारी था जो मठ के पास रहता था और निःसंतान था। भावपुरी ने सेठ से वादा किया कि उसे एक बच्चा होगा, बशर्ते वह बच्चे को मठ में चढ़ाने के लिए सहमत हो जाए। इसके बाद भावपुरी का सेठ के बेटे के रूप में पुनर्जन्म हुआ और वह डूंगरपुरी के शिष्य बन गए। ये कहानी है खोड़ा भूत की।
कहां है पेड़ ?
स्थानीय भाषा में खोड़ा का मतलब लंगड़ा होता है। इसलिए इसे खोड़ा भूत कहा जाता है। उस पर एक बोर्ड भी लगा हुआ है, जिस पर साफ-साफ लिखा है खोड़ा भूत। इस स्थान पर लोग पूजा करने भी आते हैं। यह स्थान बाड़मेर की चौहटन तहसील में बैर माता के रास्ते में एक पहाड़ी के पास स्थित है। इस स्थान को खोड़ा खेजड़ स्थान या खोड़ा देवस्थान के नाम से भी जाना जाता है। नवविवाहित जोड़े भी यहां इसकी पूजा करने आते हैं।