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Bhilwara News: भाई दूज पर कुम्हार समाज की 70 सालों से चली आ रही अनोखी परंपरा, गधों के साथ होता है ये.... पढ़ें पूरी खबर

आज शनिवार को भी इसी परंपरा का निर्वहन किया गया। कुम्हार समाज के लोगों ने गधों को नहला-धुलाकर, रंग-बिरंगे रंगों से सजाया और फूलों की मालाओं से उनका श्रृंगार किया।

Bhilwara News: भाई दूज पर कुम्हार समाज की 70 सालों से चली आ रही अनोखी परंपरा, गधों के साथ होता है ये.... पढ़ें पूरी खबर

मेवाड़ की धरा अपनी अनूठी परंपराओं के लिए जानी जाती है। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में देखने को मिलती है, जहां हर साल दीपावली के दूसरे दिन कुम्हार समाज के लोग गधों की पूजा करते हैं। ये परंपरा, जिसे वैशाख नंदन के नाम से जाना जाता है, पिछले 70 सालों से चली आ रही है।

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70 साल पुरानी परंपरा

आज शनिवार को भी इसी परंपरा का निर्वहन किया गया। कुम्हार समाज के लोगों ने गधों को नहला-धुलाकर, रंग-बिरंगे रंगों से सजाया और फूलों की मालाओं से उनका श्रृंगार किया। सजे-धजे गधों को फिर चौक में लाया गया जहां पंडितों ने विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना की और उनका मुंह मीठा कराया। इसके बाद उनके पैरों में पटाखे बांधकर उन्हें दौड़ाया गया, जिससे माहौल उत्सवमय हो गया।

गधों की पूजा

इस अनोखे आयोजन को देखने के लिए मांडल और आसपास के गांवों से लोग उमड़ पड़े। स्थानीय निवासी गोपाल कुम्हार बताते हैं कि पहले हर कुम्हार परिवार के पास गधा होता था, जो उनकी आजीविका का मुख्य साधन था। गधे तालाब से मिट्टी ढोने का काम करते थे, जिससे कुम्हार अपने बर्तन बनाते थे। जैसे किसान बैलों की पूजा करते हैं, वैसे ही कुम्हार समाज गधों की पूजा करके उनके प्रति आभार व्यक्त करता है।

अनोखी परंपरा

हालांकि, बदलते समय के साथ गधों का उपयोग कम होता जा रहा है और उनकी संख्या भी घट रही है। फिर भी, कुम्हार समाज अपनी इस प्राचीन परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए है, जो उनकी संस्कृति और उनके जीवन में गधों के महत्व को दर्शाती है। ये परंपरा ना सिर्फ अनोखी है, बल्कि पशुओं के प्रति प्रेम और सम्मान का भी एक अनूठा उदाहरण है।