उत्तर प्रदेश के मदरसों के लिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, यूजीसी ही देगा डिग्री मान्यता का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के मदरसों की फाजिल और कामिल डिग्रियों को असंवैधानिक ठहराते हुए यूजीसी के विशेषाधिकार पर जोर दिया है। अदालत ने कहा कि उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों की मान्यता यूजीसी का अधिकार है। यह फैसला मदरसा शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के लिए राज्य की भूमिका को भी रेखांकित करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मदरसा बोर्ड के फाजिल और कामिल डिग्री को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने इन डिग्रियों को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा है कि यह अधिकार भारतीय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) का है कि वह किसी भी कोर्स को मान्यता प्रदान करे।
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सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से यह स्पष्ट हो गया है कि मदरसों में दी जा रही फाजिल और कामिल डिग्री को यूजीसी से मान्यता नहीं मिल सकती, और इन डिग्रियों की मान्यता के लिए मदरसों को यूजीसी के नियमों का पालन करना होगा।
यूजीसी के विशेषाधिकार पर जोर
मदरसों की तरफ से यूजीसी से फाजिल और कामिल डिग्री की मान्यता प्राप्त करने की मांग की गई थी। लेकिन यूजीसी ने अब तक इस पर मंजूरी नहीं दी थी, और मदरसों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया और कहा कि उच्च शिक्षा से जुड़े कोर्सों की मान्यता देना यूजीसी का विशेषाधिकार है। कोर्ट के इस फैसले ने शिक्षा के मानक और गुणवत्ता बनाए रखने में यूजीसी के अधिकारों पर जोर दिया है।
मदरसों के रोजमर्रा के कामकाज में राज्य का दखल नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया था और राज्य सरकार को मदरसों के विद्यार्थियों को अन्य विद्यालयों में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था। मुख्य न्यायाधीश डी वी चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि 2004 का उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम वैध है और यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है।
गुणवत्ता सुधार में राज्य सरकार का सहयोग जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्य सरकार और मदरसा बोर्ड को मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के प्रयास करने चाहिए। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि मदरसों के रोजमर्रा के कामकाज में राज्य का कोई दखल नहीं होगा। राज्य का दायित्व केवल यह सुनिश्चित करना है कि शिक्षा का एक न्यूनतम स्तर बनाए रखा जाए, ताकि छात्रों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्राप्त हो सके।