Rajasthan: राजस्थान मे खेजड़ी पेड़ को बचाने के लिए वन विभाग ने शुरू की नई मुहीम
गर्मियों के महीने में जिन पेड़-पौधों पर रेगिस्तान आबाद रहता है। इसलिए इस पेड़ को बचाने के लिए डांग की नर्सरी में 3000 पौधे लगाए जाएंगे।
Khejri Tree: गर्मियों के दिन जैसे-जैसे तपते हैं रेगिस्तान के पेड़-पौधे भी खिलने लगते हैं।गर्मियों के महीने में जिन पेड़-पौधों पर रेगिस्तान आबाद रहता है वे हैं खेजड़ी राजस्थान में ये पेड़ लोगों के जीवन का हिस्सा होते हैं। इन पेड़ों के नाम या पहचान भी होती है। जिसे लोग सालों-साल याद रखते हैं। इसलिए इस पेड़ को बचाने के लिए डांग की नर्सरी में 3000 पौधे लगाए जाएंगे।
डांग क्षेत्र की खूबसूरती में चार चाँद लगाएंगे खेजड़ी
वनपाल नाका नारौली डांग की नर्सरी में वन विभाग की ओर से खेजड़ी के पौधे की मांग को लेकर राज्य वृक्ष खेजड़ी के 3000 पौधे लगाए जाएंगे। नर्सरी में पौधे तैयार होने से खेजड़ी के पेड़ लगाने में रुचि रखने वाले लोगों को अब कही और जाना नहीं पड़ेगा।
ये पेड़ हर मौसम मे रहता है सदाबहार
खेजड़ी का पेड़ काफी बड़ा होता है। ज्यादा विशालकाय होता है तो उसे खेजड़ भी कहते हैं। खेजड़ी राजस्थान का राज्यवृक्ष है। यह वृक्ष गर्मी हो या सर्दी हर विपरीत से विपरीत परिस्थिति को आराम से झेल लेता है। और यहां के लोगों का भी हर विपरीत परिस्थिति में साथ देता है।स्थानीय के लोग बताते हैं कि जब अकाल पड़ा था तब लोगों ने खेजड़ी की छाल पीसकर रोटियां बनाकर खाई थीं। थार के रेगिस्तान के लगभग हर गाँव में खेजड़ी का पेड़ जरूर मिल जाएगा। यहाँ के लोग इसे पवित्र भी मानते हैं। राजस्थान में पर्यावरण तंत्र का आधार है खेजड़ी। इसपर लगने वाले फल को सांगरी कहते हैं। सांगरी को कैर तथा कूमट की फलियों के साथ मिलाकर बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी बनती है। खेजड़ी के पेड़ खेतों की मेड़ पर भी लगाए जाते हैं जिससे मेड़ मजबूत बनती है।मनुष्य के साथ-साथ पशुओं के लिए भी खेजड़ी उपयोगी है। ऊँट व भेड़, बकरियों के लिए खेजड़ी के पत्ते और सांगरी जरूरी भोजन है। सांगरी जब सूख जाते हैं तो उसे खोखे कहते हैं।
खेजड़ी वृक्ष को बचाने के लिए दिए कई लोगो ने बलिदान
अब थार में खेजड़ी के वृक्षों की संख्या लगातार कम हो रही है। वे खेजड़ी के ही वृक्ष थे जिन्हें बचाने के लिए अमृता बाई ने बलिदान दिया था। 1730 ई. के उस दिन जोधपुर के पास खेजड़ली गाँव में विश्नोई समाज के 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से लिपटकर अपनी जान दे दी थी।
खेजड़ी जैसा ही होता है जाल का पेड़
जाल भी झाड़ी जैसा ही होता है पर कुछ-कुछ जगहों पर पेड़ जैसा भी दिखता है। इस पर लगने वाले फल को पीलू कहते हैं।ये फल दो रंग के होते हैं लाल और पीले। जिन्हें मारवाड़ी में रातिया (लाल) और सेड़िया (पीले) पीलू कहते हैं। जाल के पेड़ का कई औषधियों में भी उपयोग होता है। पीलू इकट्ठे करके सालभर खाते हैं इन सूखे हुए पीलूओं को कोकड़ भी कहते हैं।