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जलेबी की तरह ही बड़ा गोल है इसका इतिहास, देश के साथ विदेशों में इस मीठे पकवान के नाम जानकर हो जाएंगे हैरान!

आज हम आपको जलेबी के इतिहास से लेकर इनके अलग-अलग नाम और तमाम डीटेल्स के बारे बताने वाले है। जिसे जानकर आप सभी जलेबी खाने वालों के बीच अलग हो जाएंगे, क्योंकि आपको जलेबी के इतिहास बारे में ज्यादा पता होगा।

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हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए सभी दलों का धुंआधार प्रचार जारी है। इसी बीच कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी मंगलवार को सोनीपत के गोहाना पहुंचे थे। जहां उनका जलेबी संवाद काफी चर्चा में रहा। राहुल गांधी ने जलेबी की खूब तारीफ की।

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राहुल गांधी ने कहा कि "मैंने जैसी है ये जलेगी चखी मैंने प्रियंका को मैसेज किया और कहा कि मैंने आजतक ऐसी जलेबी नहीं चखी। इसलिए मैंने एक डिब्बा तुम्हारे लिए भी एक डिब्बा लेकर आ रहा हूं।" जेलबी की यूं तो अपनी खायियत है। लेकिन आपको बता दें कि गोहाना की जलेबी हरियाणा ही नहीं देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां लोग सिर्फ जलेगी खाने आस-पास के शहरों से आते हैं और कभी यहां से गुजरते भी हैं तो गोहाना की जलेबियां ले जाना नहीं भूलते हैं।

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लेकिन आज हम आपको जलेबी के इतिहास से लेकर इनके अलग-अलग नाम और तमाम डीटेल्स के बारे बताने वाले है। जिसे जानकर आप सभी जलेबी खाने वालों के बीच अलग हो जाएंगे, क्योंकि आपको जलेबी के बारे में ज्यादा पता होगा। अपने देश भारत के अलावा यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और ईरान के साथ-साथ तमाम अरब मुल्कों का भी एक लोकप्रिय व्यंजन है।

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टर्की आक्रमणकारियों के साथ जलेबी पहुंची भारत

वैसे तो जलेबी को सादा ही बनाया जाता है। लेकिन पनीर या खोया जलेबी को भी लोग बड़े चाव से खाते हैं। बारिश और जाड़े के दिनों में तो जलेबी खाने का अपना अलग ही मजा है। जलेबी का इतिहास आज से करीब 500 साल पुराना है। ईरान में जलेबी को जुलाबिया या जुलुबिया नाम से जाना जाता है। टर्की आक्रमणकारियों के साथ जलेबी भारत में पहुंची थी। इसके बाद जलेबी के नाम, बनाने का तरीका और इसके स्वाद में बदलाव होते चले गए।

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पश्चिम एशिया से निकला जलेबी का नाम

भारत में 15वीं शताब्दी तक जलेबी हर त्योहार में इस्तेमाल होने वाला एक ख़ास व्यंजन बन चुकी थी। यहां तक कि ये मंदिरों में बतौर प्रसाद के रूप में भी दी जाने लगी थी। अरेबिक शब्द 'जलाबिया' या फारसी शब्द 'जलिबिया' से जलेबी शब्द आया है। मध्यकालीन पुस्तक 'किताब-अल-तबीक़' में 'जलाबिया' नाम की मिठाई का वर्णन है। जो पश्चिम एशिया से निकला हुआ शब्द है।

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अपने देश में जलेबी के अनेक नाम

अपने देश में ही जलेबी की अलग-अलग नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत में ये जलेबी नाम से जानी जाती है, जबकि दक्षिण भारत में यह ‘जिलेबी’ नाम से जानी जाती है। बंगाल में यही नाम बदलकर ‘जिल्पी’ हो जाता है। गुजरात में दशहरा और अन्य त्यौहारों पर जलेबी को फाफड़ा के साथ खाने का भी चलन है। जलेबी की कई किस्म अलग-अलग राज्यों में मशहूर हैं। इंदौर के रात के बाजारों से बड़े जलेबा, बंगाल में 'चनार जिल्पी, मध्य प्रदेश की मावा जंबी या हैदराबाद का खोवा जलेबी, आंध्र प्रदेश की इमरती या झांगिरी, जिसका नाम मुगल सम्राट जहांगीर के नाम पर रखा गया है।

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इंदौर की जलेबी की अपनी खासियत

इंदौर शहर की जलेबी की अपनी खायिसत है। यहां पर 300 ग्राम वज़नी 'जलेबा' मिलता है। जलेबी के मिश्रण में कद्दूकस किया पनीर डालकर पनीर जलेबी बनती है, जबकि 'चनार जिल्पी' दूध और मावा को मिलाकर जलेबी के मिश्रण में डालकर मावा जलेबी तैयार की जाती है। लेबनान में 'जेलाबिया' एक लंबे आकार की पेस्ट्री होती है। ईरान में इसे जुलुबिया, ट्यूनीशिया में ज'लाबिया, और अरब में जलेबी को जलाबिया के नाम से जाना जाता है।